सिंधु घाटी सभ्यता (sindhu ghati sabhyata)

सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की तीसरी परंतु सर्वाधिक विकसित तथा प्राचीन सभ्यता है सिंधु घाटी सभ्यता को कई नामों से जाना जाता है जैसे:-

  1. सिंधु सभ्यता
  2. सिंधु घाटी की सभ्यता
  3. हड़प्पा सभ्यता

इस सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता इसलिए बोलते हैं क्योंकि यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे स्थित है ! इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता इस लिए कहते हैं क्योंकि इस सभ्यता के अंतर्गत सबसे पहले हड़प्पा नामक स्थल का ही उत्खनन हुआ ! इस सभ्यता का सर्वाधिक उपयुक्त नाम हड़प्पा सभ्यता है|

सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार


इसका विस्तार वर्तमान के तीन के भारत पाकिस्तान अफगानिस्तान में देखने को मिलता है इस संस्कृति का उदय भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ है ! पाकिस्तान- पंजाब सिंध और बलूचिस्तान
भारत- जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात तथा महाराष्ट्र !
अफगानिस्तान- मुंदीगक और सुरतोगोई |

सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार

सिंधु घाटी सभ्यता की चौहद्दी

उत्तर में- मांडा (जम्मू कश्मीर)-नदी– चिनाब नदी क्षेत्र
दक्षिण में-दैमाबाद (महाराष्ट्र)- नदी– प्रवरा नदी
पूरब मे– आलमगीरपुर (UP)- नदी– हिंडन नदी
पश्चिम में– सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान)- नदी– दास्क नदी

इसकी आकृति त्रिभुजाकार है ! इसका क्षेत्रफल 1299600 वर्ग किलोमीटर है ! हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रफल वर्तमान के पाकिस्तान से बड़ा तो है ही प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ा था ! तीसरी और दूसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व विश्व का सबसे बड़ा सभ्यता हड़प्पा सभ्यता था|

नदी के किनारे बसे सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल तथा खोजकर्ता

स्थलनदीप्रांतखोजकर्ता
हड़प्पारावी नदीपंजाब प्रांतदयाराम साहनी
मोहनजोदड़ोसिंधु नदीसिंधु प्रान्तरखलदास बनर्जी
चन्हूदड़ोसिंधु नदीसिंधु प्रान्तगोपाल मजमुदार
कालीबंगाघाघरा नदीराजस्थानअमलानंद्र घोष, बी.बी. लाल, बी.के थापर
कोटदीजीसिंधु नदीसिंधु प्रान्तफजल अहमद खान
सूतकागेडोरदाशक नदीबलूचिस्तानआरेल स्टेइन
रंगपुरमादर नदीगुजरातरंगनाथ राव
धौलावीरालूनी नदीगुजरातR.S विस्ट, जे.पी जोशी
रोपड़सतलज नदीपंजाबयज्ञ दत्त शर्मा
राखीगढ़ीघग्गर नदीहरियाणासूरजभान
अलमगीरपुरहिंडन नदीउत्तर प्रदेशयगदत्त शर्मा

सिंधु घाटी सभ्यता का काल निर्धारण

सिंधु घाटी सभ्यता के काल निर्धारण को लेकर विद्वानों के बीच विवाद है अलग-अलग विद्वानों ने इसका अलग-अलग काल निर्धारण किया है जैसे:-

  • जॉन मार्शल 3250BC- 2750BC
  • अर्नेस्ट मैके -2800BC-2500BC
  • माधव स्वरूप वत्स-2700BC-2500BC
  • सी.जे. ग्रेड- 2350BC-1700BC
  • मार्टीमर व्हीलर 2520BC-1700BC
  • फेयर. सर्विस- 200BC-1500BC

सर्वाधिक मान्य काल 2550BC-1900BC

C-14 कार्बन डेटिंग/ रेडियो कार्बन विधि- 2300BC-1700BC

  • इतिहास के दृष्टिकोण से- इतिहास के दृष्टिकोण से इसे आधऐतिहासिक (Proto-Historical age) में रखा जाता है क्योंकि हड़प्पा कालीन लिपि प्राप्त हुआ है परंतु अभी तक इसे पढ़ा नहीं जा सका है |
  • धातु के दृष्टिकोण से- धातु के दृष्टिकोण से इसे कास्ययुगीन सभ्यता में रखा गया है क्योंकि इस साल में तांबा और टीन के मिश्रण से बने कासा का प्रयोग किया था सर पर देखने को मिलता था|

अब तक इस उपमहादेश में हड़प्पा संस्कृति के लगभग 2800 स्थलों का पता लग चुका है जिसमें से केवल 6 स्थल सर्वाधिक विकसित अवस्था में पाया गया है जिसे नगर की संज्ञा दी गई है जो निम्न है

हड़प्पा

यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मदरगोमरी जिला में रावी नदी के किनारे स्थित है ! इस स्थल का उत्खनन कार्य 1921 ईस्वी दयाराम साहनी के नेतृत्व में हुआ| R.H-37 कब्रिस्तान, शंख का बना बैल, अन्नागार, स्त्री के गर्भ से निकला हुआ पौधा, स्वास्तिक etc की प्राप्ति यही से हुई है|

मोहनजोदड़ो

मोहनजोदड़ो
मोहनजोदड़ो

इस का शाब्दिक अर्थ मृतकों का टीला होता है क्योंकि यहां से बड़े पैमाने पर नर कंकाल प्राप्त हुए हैं मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित सिंधु नदी के किनारे लडकाना जिला में स्थित है इस स्थल का उत्खनन कार्य राखादास बनर्जी के संरक्षण में 1922 ईस्वी में हुआ|वृहद स्नानागार, मातृ देवी की मूर्ति, काँसे की नर्तकी, घोड़े का दांत, मिट्टी का तराजू, सबसे बड़ी ईट etc की प्राप्ति यही से हुई है|

Note- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सर्वाधिक महत्व के नगर थे दोनों नगर एक दूसरे से 483 किलोमीटर दूर थे और यह दोनों नगर आपस में सिंधु नदी द्वारा जुड़ा हुआ था “पिग्गट” नामक विद्वान ने हड़प्पा एव मोहनजोदड़ो को विस्तृत हड़प्पा सभ्यता के संयुक्त राजधानी की संज्ञा दिया है !

चन्हूदडो

यह स्थल पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के किनारे स्थित है या मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है इस स्थल का उत्खनन कार्य मैके तथा एन.जी. मजमुदार के द्वारा किया गया| लिपिस्टिक, चार पहियों वाली गाड़ी, मनका, अलंकृत हाथी, etc की प्राप्ति यही से हुई है|

लोथल

यह भारत के गुजरात प्रांत में भोगवा नदी के किनारे स्थित है इसका उत्खनन कार्य रंगनाथ राव के संरक्षण में हुआ|बंदरगाह, धान और बाजरे का साक्ष्य, तीन युगल समाधिया, तांबे का कुत्ता, छोटा दिशा मापक यंत्र इत्यादि की प्राप्ति यही से हुई है|

कालीबंगा

इसका शाब्दिक अर्थ काले रंग की चूड़ियां होता है यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिला में घग्गर नदी के किनारे स्थित है इसका उत्खनन कार्य अमलानंद घोष बी.बी. लाल तथा बी.के. थापर के नेतृत्व में हुआ| यताकार 7 अग्नि वेदिका, जूते हुए खेत का साक्ष्य, सूती कपड़े का छाप, मिट्टी के खिलौने, कांच एवं मिट्टी की चूड़ियां etc की प्राप्ति यही से हुई है|

बनवाली

यह हरियाणा के हिसार जिले में रंगोइ नदी के तट पर स्थित है इसका उत्खनन कर्ता रविंद्र सिंह बिष्ट थे| हल्की आकृति वाले मिट्टी के खिलौने etc की प्राप्ति यही से हुई है|

Note- सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल मोहनजोदड़ो है जबकि भारत में इस सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी है जो हरियाणा में घग्गर नदी पर स्थित है | हड़प्पा सभ्यता से सर्वाधिक स्थल गुजरत राज्य में मिले हैं जैसे- लोथल, रंगपुर, रोजदी, सुतकागेंडोर, धौलावीरा, आदि|

हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक क्रियाकलाप

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग बहुदेववाद थे भारत में मूर्ति पूजा का पहला प्रमाण हड़प्पा काल में देखने को मिलता है हड़प्पा सभ्यता के लोग देवी और देवता दोनों की पूजा किया करते थे ! हड़प्पा कालीन सबसे लोकप्रिय देवता शिव थे शिव की पूजा दो रूपों में करते थे पहला शिवलिंग की पूजा जिस का सर्वाधिक प्रचलन था लिंग पूजा की शुरुआत हड़प्पा काल से ही हुआ है दूसरा शिव के मानव के रूप में पूजा इसका प्रमाण मोहनजोदड़ो से मिला है मोहनजोदड़ो में एक सील पर ध्यान की मुद्रा में एक योगी की प्रतिमा मिली है इस योगी के सिर पर तीन सिंह है इसके चारों ओर एक हाथी एक बाघ और एक गेंडा है आसन के नीचे एक भैंसा है और पांव पर दो हिरण है ! मुहर पर चित्रित देवता को पशुपति महादेव बताया गया है|

  • हड़प्पा कालीन मानव देवियों की पूजा भी दो रूपों में करते थे पहला देवी के योनि रूप की पूजा और दूसरा मानव रूप में पूजा ! हड़प्पा में पक्की मिट्टी की स्त्री मूर्तियां भी बहुत संख्या में मिली है !
  • एक मूर्ति का में स्त्री के गर्भ से निकला पौधा दिखाया गया है यह संभवत पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका निकट संबंध पौधा के जन्म और वृद्धि से रहा होगा इसलिए मालूम होता है कि हड़प्पा लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस तरह मिस्र के लोग नील नदी की देवी आयरिश की पूजा करते थे|
  • हड़प्पा तथा मिस्र की सभ्यता समाज मातृसत्तात्मक थी हड़प्पा सभ्यता से मूर्ति के प्रमाण मिले हैं परंतु मंदिर के प्रमाण नहीं मिले हैं| इसके समकालीन मिश्र और मेसोपोटामिया में मंदिर का निर्माण किया जाता था|
  • हड़प्पा वासी प्राकृतिक पूजा में भी विश्वास करते थे हड़प्पावासी सूर्य की पूजा करते थे लोथल के उत्खनन से स्वास्तिक चिन्ह का प्रमाण मिलता है जो सूर्य का प्रतीक है|
  • हड़प्पा वासी पशु-पक्षी, नदी-झरना पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि सभी की पूजा किया करते थे|
  • हड़प्पा काल के लोगों का सबसे प्रिय पशु एक सिंघ वाला जानवर जो गेंडा हो सकता है या बसहा बैल था इसके बाद महत्व का कुबड वाला सांड था|
  • हड़प्पा वासी यज्ञ प्रथा से भी परिचित थे विभिन्न अवसरों पर उनके द्वारा यज्ञ किए जाते थे कालीबंगा लोथल एवं बनवाली में अग्नि कुंड के साक्ष्य मिले हैं हड़प्पा वासी यज्ञ के अवसर पर पशुओं की भी बलि देते थे जिसका साक्ष कालीबंगा से मिला है !
  • हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से बड़ी तादाद में ताबीज मिले हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग भूत-प्रेत के बारे में जानते थे|

आर्थिक जीवन

सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी भारत में नगरीयकरण का पहला साक्ष्य हड़प्पा काल में ही दिखाई पड़ता है हड़प्पा काल में एक संपन्न कृषि व्यवस्था पशुपालन उद्योग धंधा तथा व्यापार वाणिज्य का विवरण मिलता है|

कृषि एव पशुपालन

सिंधु घाटी सभ्यता काल में कृषि व्यवस्था विकसित व्यवस्था में था इस समय अधिशेष उत्पाद का विवरण मिलता है हड़प्पा सभ्यता के लोग गेहूं, जो, राई, मटर, चावल, कापास, तिल, सरसों, आदि फसलों से अवगत थे|

NOTE- सबसे पहले कपास उत्पादन करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को है क्योंकि कपास का उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में ही हुआ इसीलिए यूनान के लोग इसे सिंडन कहने लगे जो सिंधु शब्द से निकला है

कृषि पर निर्भर होते हुए भी हड़प्पा वासी लोग बहुत सारे पशु पालते थे वह बैल, गाय, भैंस, बकरी, और सुअर पालते थे ! यह लोग कुत्ता और बिल्ली भी पालते थे इन दोनों के पैर के निशान मिले हैं वह गधे और ऊंट भी रखते थे और शायद इन पर बोझा धोते होंगे हड़प्पाइ लोगों को हाथी और गेंडे का भी ज्ञान था खासतौर पर गुजरात में बसे लोग हाथी पालते थे|

घोड़ा:- गुजरात के सुरकोटड़ा से घोड़ा की हड्डी प्राप्त हुआ है इसके अलावा मोहनजोदड़ो और लोथल से घोड़े की मिट्टी की बनी हुई और आग में पक्की हुई मूर्ति प्राप्त हुई है जिसे टेराकोटा कहा जाता है|

व्यापार तथा उद्योग धंधा

सिंधु घाटी सभ्यता काल में विभिन्न प्रकार के उद्योग धंधे का प्रचलन था जैसे मृदभांड उद्योग, वस्त्र निर्माण उद्योग, धातु उद्योग, आदि से हड़प्पा वासी परिचित थे|
हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से दो प्रकार के मृदभांड प्राप्त हुए हैं !

  1. गेरुआ रंग का मृदभांड
  2. लाल एवं काले रंग का मृदभांड

  • लोथल से एक चित्रित मृदभांड मिला है जिस पर कौवा और लोमड़ी का चित्र बनाया गया है इससे स्पष्ट होता है कि विष्णु शर्मा की रचना पंचतंत्र की कहानी से हड़प्पा वासी भी परिचित थे !
  • हड़प्पा काल में वस्त्र निर्माण उद्योग का प्रचलन था मोहनजोदड़ो के उत्खनन से सूती वस्त्र के एक टुकड़ा का साक्ष्य मिला है !
  • हड़प्पा वासी वस्त्र की सिलाई रंगाई छपाई आदि कला से भी परिचित थे इसका प्रमाण धौलावीरा से मिला है !
  • हड़प्पा वासी लोहा से परिचित नहीं थे इसके अलावा अन्य धातु जैसे सोना, चांदी, टिन, तांबा आदि से परिचित थे
  • Note- भारत में लोहा का प्रचलन पहली बार 1000 ईसवी पूर्व से प्रारंभ हुआ माना जाता है ! लोहा का पहला साक्ष्य उत्तर प्रदेश के अतरंजीखेड़ा में देखने को मिला था |

व्यापार हड़प्पा काल में लोगों का मुख्य व्यवसाय व्यापार था ! इस काल में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रकार के व्यापार का प्रचलन था ! हड़प्पा काल में सर्वाधिक विदेशी व्यापार मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ होता था मेसोपोटामिया के अभिलेख में हड़प्पा के लिए “मेलूहा” शब्द का प्रयोग किया गया है हड़प्पा एवं मेसोपोटामिया के बीच व्यापारिक क्षेत्र में दिलमुन तथा माकन मध्यस्था का कार्य करता था ! दिलमून की पहचान आज की फारस की खाड़ी में स्थित बहरीन से की गई है जबकि माकान की पहचान मकरान तट से की गई है|

  • हड़प्पा कालीन सबसे विकसित बंदरगाह के रूप में लोथल का विवरण मिलता है| हड़प्पा काल में व्यापार वस्तु विनिमय प्रणाली के आधार पर होता था|
  • मोहनजोदड़ो का उत्खनन से नृत्य करती हुई काँसे की नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुई है|
  • हड़प्पा वासी माप तोल आदि कला से भी परिचित है इस गिनती में 16 एवं उसके गुणज का प्रयोग होता था जो दशमलव प्रणाली की सूचक है|
  • लोथल से तराजू का पल्ला जबकि मोहनजोदड़ो से बटखारा की प्राप्ति हुई है|
तांबाखेतड़ी, बलूचिस्तान
चांदीअफगानिस्तान, ईरान
सोनाअफगानिस्तान, ईरान, कर्नाटक
शीशाईरान
टीनअफगानिस्तान, ईरान
व्यापार

राजनीतिक जीवन

सिंधु घाटी सभ्यता काल में स्पष्ट तौर पर किसी राजनीतिक संगठन का आभास (उदय) नहीं हुआ था! इस काल में शासन प्रणाली राजतंत्रात्मक या जनतंत्रात्मक थी! इसको लेकर विद्वानों के बीच व्हीलर नामक विद्वान ने कहा है कि हड़प्पा काल में राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली न होकर जनतंत्रात्मक शासन प्रणाली हुआ करता था! अधिकतर विद्वानों का मानना था कि हड़प्पा काल में व्यापारिक या वणिक वर्ग सबसे अधिक शक्तिशाली था जिस कारण इस काल में शासन-प्रशासन वणिक वर्गों के हाथों में हुआ करता था|

सामाजिक जीवन

सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन से जो साक्ष्य मिले हैं उसे देखकर कहा जा सकता है कि हड़प्पा काल में संभवत: मातृसत्तात्मक समाज का प्रचलन था क्योंकि उत्खनन से बड़े पैमाने पर महिलाएं की मूर्ति मिली है हड़प्पा काल के समाज में 4 वर्ग के लोग रहते थे जैसे-

  1. पुरोहित (विद्वान)
  2. योद्धा
  3. व्यापारी और
  4. श्रमिक


हड़प्पा कालीन लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे!
लोथल से मछली पकड़ने का कांटा कालीबंगा से पशुओं की कटी हुई हड्डी का साक्ष्य मिला है!
हड़प्पा से तांबे का दर्पण कागल लगाने की सलाई तथा चन्हूदरो से लिपस्टिक का साक्ष्य मिला है!
यहां के लोग मनोरंजन के लिए चौपड़ और पासा खेलते थे!
लोथल से शतरंज के साथ मिले हैं जबकि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से पासा के साक्ष्य मिले हैं|
हड़प्पा की उत्खनन से एक अनोखी कब्रिस्तान प्राप्त हुआ है जिसे RH-37 कब्रिस्तान नाम दिया गया है!
रोपड़ से एक कब्र के भीतर मानव शरीर के साथ कुत्ता का शरीर का साक्ष्य मिला है!

भवन:-

सड़कों के किनारे सुनियोजित तरीके से भवनों का निर्माण होता था समानता एक मंजिले भवन बनते थे हालांकि मोहनजोदड़ो से दूर मंजिलें तथा 30 कमरे वाले भवन प्राप्त हुए हैं जिसे सभा भवन या कॉलेज भवन की संज्ञा दी गई है इस साल में भवन की जुड़ाई इंग्लिश बोर्ड पद्धति या ग्रीड पद्धति के आधार पर होता था !
भवन की दरवाजा मुख्य सड़क की ओर नहीं खुलकर गली की ओर खुलती थी प्रायः सफाई और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसका प्रबंध किया जाता था अपवाद स्वरूप “लोथल” नगर के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलता था|

  • इस सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत या भवन मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार हैं जिसकी लंबाई 45.7 मीटर और चौड़ाई 15.3 मीटर है !
  • इस सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार है यह 11.88 मीटर लंबा 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा था बताया जाता है कि यह विशाल स्नानागार धर्म अनुष्ठान संबंधित स्नान के लिए बना होगा !
  • हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता उसकी जल निकासी प्रणाली थी मोहनजोदड़ो की जल निकासी प्रणाली अद्भुत थी|

हड़प्पा सभ्यता की विशेषता

सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता इसकी नगर योजना प्रणाली थी हड़प्पा काल में नगरों का निर्माण काफी योजनाबद्ध तरीका से होता था ! इस सभ्यता के पश्चिमी भाग जो कि सामान्य से ऊंचा होता था इसमें राजे महाराजे तथा शासक वर्ग के लोग रहते थे, दूसरा पूर्वी भाग जो कि नीचा होता था इसमें आम जनता निवास करती थी समान्तयः पूर्वी एवं पश्चिमी भागों के अलग-अलग किलाबंदी होता था हालांकि “कालीबंगा” से दोनों की ही किलाबंदी का विवरण मिलता है “धोलावीरा” से त्रिस्तरीय नगरों का प्रमाण मिलता है|

  1. राजप्रसाद वाला क्षेत्र- राजा
  2. मध्यवर्ती नगर- व्यापारी वर्ग
  3. निचला भाग- आम जनता

हडप्पा सभ्यता के अंतर्गत मकान या घर पक्की इट से निर्मित होता था ! हड़प्पा काल में सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटते हुए आगे की ओर बढ़ती थी जिससे पूरा नगर चौकोर अर्थात chess bord की भांति दिखाई पड़ता था सडके तीन प्रकार की पाई जाती है

  1. सबसे चौड़ी सड़क- सबसे चौड़ी सड़क मोहनजोदड़ो में देखने को मिलता है यह 33 फीट चौड़ी है इसे राजपथ की संज्ञा दी जाती है
  2. मध्यम चौड़ी सड़क
  3. गली वाली पतली सड़क
    सड़कों का निर्माण कच्ची ईंट या मिट्टी की सहायता से होता था|

पतन

  1. गार्डन चाइल्ड एवं व्हीलर- व्हाई आर यू के आक्रमण
  2. जॉन मार्शल आर्ट नेस्ट मेकिंग एस.आर राव- बाढ़
  3. आरेल स्टेइन, अमलानंद घोष- जलवायु परिवर्तन
  4. एम.आर साहनी- भूतात्विक परिवर्तन
  5. जॉन मार्शल – प्रशासनिक शिथिलता

Note- इसमें सर्वाधिक माननीय मत बाढ़ को बताया गया है!हाल ही में हुए उत्खनन से IIT खड़कपुर को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन से संबंधित प्रमाण मिला है इस प्रमाण के आधार पर पाया गया है कि इस सभ्यता के पतन का अहम कारण जलवायु परिवर्तन है!

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज किसने की थी?

दयाराम साहनी

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब की गई थी?

1921

इन्हे भी पढ़े:- Biology

1857 ka vidroh

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